गुरुवार, अगस्त 30, 2007

विख्यात इतिहासकार श्री रामचन्द्र गुहा से पूछना चाहता हूँ ....




Rediff.com को दिये गए इस साक्षातकार में विख्यात इतिहासकार माननीय रामचन्द्र गुहा जी ने कहा है कि "I believe there was no India before the British came." आगे वे कहते हैं कि "It was the British that united the country,..."।

तो मैं आदर्णीय गुहा जी से जानना चाहता हूँ कि कल को अगर मैं उनके दोनों हाथ काट डालता हूँ तो क्या वे मुझे अपने बचे हुए शरीर का जन्म दाता कहेंगे? क्या वो मुझे इस बात के लिए धन्यवाद देंगे? ब्रिटिश ने भी तो हमारे साथ यही किया था। भारत माता को खण्डित किया था। यह एक चिरन्तन सत्य है। तो फिर हम उनहें भारत की एकता का श्रेय क्यों दें।

भारत की सांस्कृतिक एकता तो सदियों पुरानी है, ब्रिटिश के आने से भी पहले ही नहीं अपितु आक्रान्ता अलक्षेन्द्र के आगमन से भी पहले की। विष्णू पुराण में यह सुन्दर मंत्र आता है -

उत्तरम् यत समुद्रस्य
हिमाद्रेश्चैव दक्षीणम्
वर्शम् तद् भारतम् नाम
भारती यत्र संततिः।।

इस से यह सिद्ध होता है कि आज से सहास्रों वर्ष पूर्व भी हिमालय से समुद्र - परयन्त भूमी साँसकृतिक एवम भावनात्मक रूप से एक थी। और इस प्रकार की एकता राजनैतिक एकता से कई ज्य़ादा मूल्यवान है। राजनैतिक रूप से विघटनात्मक प्रवृत्तियों के इस दौर में हमें उपरोक्त मंत्र को न सिर्फ स्मरण करना है अपितु इसका प्रचार भी करना है। भारत की अक्षुण्णता भारतीयता में हमारे दृड विष्वास से ही कायम रह सकती है। और भरतीयता ब्रिटिश की देन नहीं। यह तो भारत के जन - मानस में युगों से रक्त के समान प्रवाहित हो रही है।

सोमवार, अगस्त 27, 2007

राष्ट्रकवी रामधारी सिंह दिनकर



राष्ट्रकवी रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं से मेरा परिचय पाँचवी या छठी कक्षा में हुआ और तब से ही मैं इन की कविताओं का मैं घोर प्रशंसक रहा हूँ। यह दिनकर जी की लिखी कविताओं में से मुझे सबसे प्रीय है -
नमन करूँ मैं

तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं ?

भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है,
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है।
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ?

भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है ।
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है ।
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं ?

खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से,
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से,
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है,
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है।
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं ?

दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं,
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं,
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन,
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन।
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं ?

उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है,
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है,
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है,
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं ?

रविवार, अगस्त 26, 2007

श्री अशोक चक्रधर का ब्लॉग



कल हैदराबाद में हुए विस्फोटों के बार में हर समाचार चैनल पर दिखाए जाने वाले हृदय-विदारक दृश्यों को देख कर मन बडा क्लान्त था। पर अचानक आज प्रातः जब मैं गूगल पर कुछ ढूंढ़ रहा था, तो मुझे सुप्रसिद्ध व्यंगकार अशोक चक्रधर का ब्लॉग मिला। बडा अच्छा ब्लॉग है। पड़ कर मन तर-ओ-ताज़ा हो गया।

शनिवार, अगस्त 25, 2007

हैदराबाद में फिर विस्फोट



हैदराबाद में आज फिर बम-विस्फोट हुए। इस बार कोठी स्थित गोकुल चाट भण्डार तथा हुसैन सागर के समीप स्थित लुम्बिनी पार्क में लेज़र शो प्रांगण में हुए। लग भग चालीस लोग मारे गए। ये विस्फोट सायंकाल के समय हुए जब इन दोनों स्थलों पर लोग सपरिवार जमा होते हैं। मक्का मस्जिद में हुए बम विस्फोट के बाद कुछ ही समय के अंतराल से अब ये विस्फोट। कहाँ है सरकार और कहाँ है इंटेलिजेन्स मशीनरी। कई दिनों से इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स आ रहीं थी कि नगर में कुछ ऐसी वारदात होने की आशंका है, कहा जा रहा है कि आज प्रातः ही मुख्य मंत्री राजशेखर रेड्डी ने गृह मंत्री शिवराज पाटिल से बात की थी पर इस वारदात के लिए सरकार एवम पुलीस दोनो तैय्यार नहीं थे। Clearly a case of Total Intelligence Failure resulting in loss of innocent lives.

मंगलवार, अगस्त 21, 2007


BCCI की मति मारी गई



बी सी सी आई ने भारत के पूर्व कप्तान कपिल देव को नैशनल क्रिकेट अकादमी के चेयरमैन पद से हटा दिया है। जब से कपिल ने ज़ी के सुभाष चन्द्रा द्वारा स्थापित आई सी एल को अपना समर्थन दिया है तब से यस निश्चित ही था की बी सी सी आई कपिल को ज़्यादा दिन तक नहीं झेलेंगे। अन्त तो गत्वा उन्होंने यह ठोस कदम उठा कर अपना वर्चस्व सिद्ध करने का प्रयत्न किया है।
बोर्ड ने उन खिलाडियों के खिलाफ़ भी कठोर कदम उठाए हैं, जिन्होंने आई सी एल से करार कर लिया है। इन खिलाडियों को न तो देश के लिए और न ही प्रान्त के लिए खेलने दिया जाएगा।
सुभाष चन्द्रा की लीग में काफ़ी सारे दिग्गजों के नाम हैं जैसे, ब्राइन लारा, इन्ज़माम उल हक़, लॉन्स क्लूज़नर, निकी बोये, इत्यादी। हैदराबाद के कई खिलाडियों ने अब तक लीग से करार कर लिया है।

बाबू गुलाबराय



दसवीं कक्षा में हम ने बाबू गुलाब राय द्वारा रचित "मेरी असफ़लताएँ" में से एक उद्धरण "उसे न भूलूँगा" पड़ा था। इतना पसंद आया था कि कई वर्षों तक इसे बार-बार पड़ता रहता था। गुलाबराय जी की लेखन शैली बड़ी मनोरम है।
आज मैंने नेट पर गुलाब राय जी के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही। गूगल पर जब मैंने हिन्दी में गुलाबराय शब्द खोजा तो अधिक लिंक्स नहीं मिले। तब मैं ने अंग्रेज़ी में खोजा तो बाबू गुलाबराय का जालपृष्ठ मिल गया। जालपृष्ठ यहाँ है। यहाँ से मैंने "मेरी असफ़लताएँ" डाउनलोड की। फिर से बचपन की स्मृतियाँ ताज़ा हो उठी हैं। हमारे हिन्दी के अध्यापक तिवारी सर की बडी याद आ रही है।

सोमवार, अगस्त 20, 2007

नीड़ का निर्माण



आज नेट पर मुझे बच्चन जी की यह कविता मिली। यह कविता मुझे बहुत पसंद आती है।



नीड़ का निर्माण


नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर।

बह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अंधेरा
धूलि घूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,

रात सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उतपात भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किन्तु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर,

नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर।

वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,

हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलों पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड
ईंट पत्थर के महल-घर,

बोल आशा के विहंगम
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर,

नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर।


क्रुद्ध नभ के वज्र दन्तों
में उषा है मुस्कुराती
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती,

एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती,

नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नवगान फिर-फिर,

नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर।

- हरिवंश राय बच्चन


शॉपिंग


जी हाँ श्रीमान, शॉपिंग। इस बात से तो सभी पुरुष सहमत होंगे कि नारी मुक्ती तथा नारी अधिकार के इस युग में ऐसे कार्य कम ही हैं जिन्हें स्त्रियों की तुलना में हम पुरुष जलदी कर सकते हैं। शॉपिंग इनहीं गिने चुने कार्यों में से एक है। अब कल ही की बात है मैं और श्रीमती जी बच्चों के साथ Lifestyle मॉल गए थे। मैं और मेरा लड़का, हम दोनों अपनी - अपनी शॉपिंग, आधे घंटे में समाप्त कर बाहर आ गए। परन्तु श्रीमतीजी ने पूरे दो घंटे लगाए। मैं मॉल के lounge में बैठा यह गीत गुनगुनाता रहा - "इन्तेहा हो गई, इन्तेज़ार की ..... "

शनिवार, अगस्त 18, 2007

नागपञ्चमी


आज नागपञ्चमी है। प्रातः स्नानादि से निवृत्त हो कर हम लोग साँप वाले की प्रतीक्षा करते बैठे। शनिवार था इसलिए फुरसत थी। साँप वाला १० बजे आया। नाग देवता की पूजा हुई। दूध पिलाया गया। हाँ हम सभी जानते हैं कि साँप दूध नहीं पीते पर क्या करें, आदत से मजबूर जो ठहरे।

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